
Interview with Playback Singer Sharda on Vividh Bharti (27.9.09).
(This is the hindi-devanagari transcript. However, it is really heartening to receive many readers' requests to post the english translation since they have difficulty reading in hindi. English translation would certainly be posted ASAP. Please keep looking for the same!)
एपिसोड 3 (27/09/2009)
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श: शारदा
यूख़ा: यूनुस ख़ान
यूख़ा: आपको याद होगा कि दूसरी कड़ी में शारदा जी बता रही थीं कि किस तरह से रफ़ी साहब ने उन्हे सिखाया था कि गाने में 'एक्सप्रेशन्स' कैसे लाए जाते हैं.
श: इसलिए तो "सुन सुन" में भी 'एक्सप्रेशन्स' थे.
यूख़ा: बताइए ना!
श: (गिगल्स & सिंग्स) "सुन-सुन-सुन रे बलम, दिल तुझको पुकारे, चल-चल-चल रे बलम दिल तुझको पुकारे". "पुकारे" तो पुकारता है ना, 'इट्स अ रिक्वेस्ट', नहीं तो अगर 'प्लेन' आप गाएँगे तो (सिंग्स विदाउट एक्सप्रेशन्स) "सुन-सुन-सुन रे बलम, दिल तुझको पुकारे".
यूख़ा: हम्म्म्म्म
श: यह गाना हो गया. लेकिन उसमें दिल और आत्मा
यूख़ा: सही है. क्या बात है, बहुत अच्छी तरह से आप 'डेमोन्स्ट्रेट' करती हैं. मुझे याद आया कि आपका एक ग़ज़लों का 'अल्बम' आया था, आज से करीब दो साल पहले.
श: जी जी. वो मैं 'प्राइवेट्ली डिसट्रिब्यूट' करती हूं क्योंकि वो कोई 'कंपनी' के 'थ्रू रिलीस' नहीं हुआ है, और वो मैने 'फर्स्ट टाइम' किया क्योंकि मिर्ज़ा ग़ालिब की ग़ज़ल देख कर मुझे इतना अच्च्छा लगा कि उसमें भी एक-एक में इतनी अच्छी 'फिलॉसोफी' थी और मैने 'कंपोज़' किया. फिर दूसरा पढ़ा तो दूसरा 'कंपोज़' किया, तीसरा भी किया, इस तरह से मैने 24 ग़ज़ल्स 'कंपोज़' किया. और 'ट्विन अल्बम' मैने तैयार किया और अभी 'प्राइवेट्ली' लोग माँग रहे हैं, 'डिमांड' हो रही है 'ऑल ओवर द वर्ल्ड' और 'प्राइवेट्ली' उसको 'डिसट्रिब्यूट' कर रही हूं. मेरा 'वेबसाइट' है www.titliudi.com
यूख़ा: क्या बात है (लाफ्स)
श: और मेरा ईमेल आइडी है musicsharda@gmail.com
यूख़ा: क्या बात है! अच्छा यह बताइए कि मिर्ज़ा ग़ालिब की कौन-कौन सी ग़ज़लें आपने गाई हैं और कौन सी ग़ज़ल सब से ज़्यादा आपको पसंद है?
श: उसमें से "हज़ारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले", और "फिर मुझे दीदा-ए-तर याद आया"
यूख़ा: वाह-वाह
श: और "दिल-ए-नादान तुझे हुआ क्या है"
यूख़ा: वाह
श: "दिल-ए-नादान" Youtube में आया है
यूख़ा: जी जी. तो आप इस वक़्त हमारे लिए कौन सी ग़ज़ल गुनगुनाएँगी?
श: (सिंग्स) "रहिए अब ऐसी जगह चल कर जहाँ कोई ना हो, हमसुखन कोई ना हो और हमज़बान कोई ना हो..."
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सॉंग: रहिए अब ऐसी जगह (नॉनफ़िल्मी ग़ज़ल - शारदा)
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यूख़ा: बहुत ही बढ़िया, क्या बात है! आज भी आप 'स्टेज शोज़' करती हैं?
श: 'स्टेज शोस' बहुत करती हूं, 'अल्बम' भी कर रही हूं, अभी छोटे-छोटे बच्चों के लिए 'अल्बम' कर रही हूं. मैने 'टीन एज म्यूज़िक', 3 साल से लेके 8 साल के बच्चों के लिए छोटे-छोटे गीत जैसे, रोज़ जैसे, मां, अपने 'फादर' के साथ जैसे देखते हैं बच्चे लोग, उन 'सब्जेक्ट्स' के ऊपर, यह नहीं कि उनको यह करना पड़े कि दिल दे दिया या प्यार हो गया (यूख़ा लाफ्स), इन सब की ज़रूरत नहीं, और एक और 'टीन एज म्यूज़िक' करके 8 साल से 15 साल के बच्चों के लिए 'नेचर' के ऊपर, 'बर्ड्स' के उपर, ऐसा भी किया.
यूख़ा: ऐसा भी एक गाना सुना दीजिए, पता तो लगे कि बच्चों के लिए आपने कैसे प्यारे गाने बनाए हैं.
श: (सिंग्स) "लहरें, सागर की लहरें, चंचल लहरें, कभी नहीं रुकती, उठती ही रहती, लहरें, लहरें".
यूख़ा: क्या बात है
श: यह 'टीन एज' बच्चों के लिए हैं
यूख़ा: और इसमें एक संदेश भी है कभी नहीं रुकने का, चलते रहने का.
श: यह पूरा, 'यू नो, प्रोग्रेसिव ऎंड एंकरेजिंग सॉंग्स' हैं. बच्चों को 'ऎक्चुअली' यह सब गाने सुनने से मन में उमंगें उठेंगी और एक जोश जैसा आएगा.
यूख़ा: बहुत सही कहा आपने शारदा जी. तो आपका 'कंपोज़' किया हुया एक बाल भजन सुना जाए?
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सॉंग: रामा-रामा सीता रामा (नॉनफिल्म भजन - शारदा)
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यूख़ा: अच्च्छा यह बताइए कि आज के ज़माने के गाने सुनकर क्या आपको कुछ गाने पसंद आते हैं? किस तरह के ख़याल आते हैं?
श: 'वेल', कुछ गाने सुन कर हमें अच्छे लगने लगते हैं, लेकिन आम तौर पर ऐसा कोई गीत 'इंप्रेस' करता हुआ नज़र नहीं आता.
यूख़ा: क्या 'प्रॉब्लम' है आज के संगीत में? सबसे बड़ी 'प्रॉब्लम' क्या है?
श: 'प्रॉब्लम' यही है कि अभी 'म्युज़ीशियन्स' लोग 'म्यूज़िक डाइरेक्टर' बन गये हैं. 'म्यूज़िक डाइरेक्टर' को अलग एक कुदरती देन होती थी, जैसे नौशाद साहब थे, मदन मोहन जी थे, नय्यर साहब थे, 'दे वर ऑल म्यूज़िक डाइरेक्टर्स', वो लोग 'ट्यून्स कंपोज़' करते थे. आजकल 'म्युज़ीशियन्स' लोग 'कंप्यूटर' में 'रेकॉर्ड' हो जाता है, कुछ भी आप 'नोट' बजाईए, उसके अंदर बोल डालिए, वो 'सॉंग' हो जाता है. 'दॆट इज़्अ वाइ, यू नो, ट्यून्स आर नॉट प्रॉपर्ली कंपोज़्ड'
यूख़ा: अच्छा, जब आप देखती हैं किआजकल के बच्चे भी जब पुराने गाने गाते हैं 'म्यूज़िक शोज़' में, 'टेलिविज़न' पर भी गाते हैं, 'प्राइवेट' महफ़िलों में भी गाते हैं, तो कैसा महसूस होता है?
श: ऐसा लगता है कि, जैसे रामायण है, उसे कोई भी पीढ़ी सुनेगी ही, उसे गाएगी ही. वो तो कभी नहीं मिटने वाली है ना. 'वी लिव्ड इन द गोलडेन एरा ऑफ फिल्म म्यूज़िक', वो हमेशा के लिए सदाबहार रहेगी.
यूख़ा: और इसी बात पर मुझे आपका एक सदाबहार गाना याद आ रहा है दीवाना फिल्म का, "तुम्हारी भी जय-जय, हमारी भी जय-जय"
श: (गिगल्स)
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सॉंग: तुम्हारी भी जय-जय (दीवाना)
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श: क्या है कि दीवाना में कोई भी लडकी का 'सॉंग्स' नहीं रखा, मेरे तीन 'सॉंग्स' थे उसमें, "तुमको सनम पुकार के" और "तारों से प्यारे" और "तुम्हारी भी जय-जय", 'आई डोंट नो वॉट हॅपंड टु द प्रोड्यूसर्स, वाइ दे डिंट कीप माइ सॉंग्स', अभी तक 'पब्लिक' तो कितना सुनना ही चाहती है.
यूख़ा: जी जी, हम भी सुनना चाहते हैं.
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सॉंग: तारों से प्यारे... आना ही होगा (दीवाना)
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यूख़ा: शारदा जी, "दुनिया की सैर कर लो" एक ऐसा गाना है, आज तो दुनिया की सैर करना वाक़ई 'ईज़ी' हो गया है, अराउंड द वर्ल्ड तो बड़ी मह्त्वपूर्ण फिल्म थी, यह गाना आजकल भी सब लोग गा रहे हैं.
श: देखिए यह गाना तो आज भी नया जैसा लगता है. आज का 'रेकॉर्डिंग' किया हुआ लग रहा है, इसका 'ट्यून ऎंड एवरीथिंग'. 'द ट्यून इज़ सो मॉडर्न ऎंड यूनीक'.
यूख़ा: यह गाना हम आप से सुनना चाहते हैं
श: (गिगल्स & सिंग्स) "दुनिया की सैर कर लो...", आप भी साथ में गाओ (यूख़ा लाफ्स लाउड्ली)
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सॉंग: दुनिया की सैर कर लो (अराउंड द वर्ल्ड)
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यूख़ा: बहुत-बहुत अच्छा लगा. शारदा जी, आज जो 'म्यूज़िक' आ रहा है, उसमें बोलों को बहुत ज़्यादा महत्व नहीं दिया जा रहा है. केवल 'इन्स्ट्रुमेंट्स' ...
श: बोल लिखेंगे कौन? अच्छे-अच्छे 'लिरिसिस्ट्स' भी तो चाहिए ना? क्या 'ब्यूटिफुल सॉंग्स ऎंड लिरिक्स' कि सुनकर आदमी को आँसू आ जाते थे. पहले के गीत अभी भी सुनते हैं तो, तलत साहब के गीत हैं, लोग रोते थे सुनते हुए.
यूख़ा: आज के गीतों का जो 'अनॅलिसिस' है आपका, उसमें 'स्पिरिचुऎलिटी' भी आती है, उसमें बाकी चीज़ें भी आती हैं, तो उसके बारे में बताइए.
श: अभी मैं जैसे इंग्लिश सॉंग्स सुनती हूं, तो इंग्लिश सॉंग्स में बहुत 'सोल' है. जैसे टाइटॅनिक का 'सॉंग' है, कितना 'टचिंग' है, 'मॉडर्न' होने के बाद भी, आज के दौर के होने के बावजूद, तो इस तरह से गीत होना चाहिए, उस तरह से 'म्यूज़िक' भी होना चाहिए, 'टॅलेंटेड' लोगों को मेहनत करके 'रेकॉर्डिंग' करना चाहिए, यह नहीं कि आप ने हाथ लगाया कि 'ऑटोमॅटिक रिदम' आ जाता है, 'ऑटोमॅटिक म्यूज़िक' आ जाता है, उसको 'ऑटोमॅटिक' डाल दो तो उसमें 'सोल' कैसे आएगा?
यूख़ा: उस ज़माने में तो बाक़ायदा 'रिहर्सल्स' होती थी, 'ट्यून्स' पर लंबा काम होता था
श: हां, 'ट्यून्स' पे कितने मोड़ आते थे, नौशाद साहब के कितने मोड़, अभी तो सीधे-सीधे सरगम (हम्स अ मॉडर्न ट्यून), यह 'ट्यून' हो गया, अभी सरगम का कोई 'एक्सर्साइज़' ले लीजिए और 'एक्सर्साइज़' लेकर कोई भी गाना बना दीजिए. ऐसा हो गया ना!
यूख़ा: जी जी, फिर भी क्या कोई गाना इन दिनो का आपको पसंद आता है जिसका आप ज़िक्र करना चाहें?
श: अभी तो आप ने मुश्किल में डाल दिया (बोथ लाफ़), हां यह 'मॉडर्न सॉंग' सुनने में अच्छा तो लगता ही है, नाचने के जैसा, 'बॉडी' में 'मूव्मेंट' आ जाता है, 'एरोबिक एक्सर्साइज़' करने के जैसा मन होता है (यूख़ा लाफ्स). जैसे "कजरारे" और "मौजा ही मौजा", इससे 'बॉडी' को 'एक्सर्साइज़' मिल जाता है.
यूख़ा: हम्म्म्म्म, 'म्यूज़िक' से ज़्यादा 'एरोबिक्स' की 'रिदम' ज़्यादा लगती है.
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सॉंग: कजरारे कजरारे (बंटी और बबली)
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एंड ऑफ एपिसोड-3
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